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सं न॑: शिशीहि भु॒रिजो॑रिव क्षु॒रं रास्व॑ रा॒यो वि॑मोचन । त्वे तन्न॑: सु॒वेद॑मु॒स्रियं॒ वसु॒ यं त्वं हि॒नोषि॒ मर्त्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

saṁ naḥ śiśīhi bhurijor iva kṣuraṁ rāsva rāyo vimocana | tve tan naḥ suvedam usriyaṁ vasu yaṁ tvaṁ hinoṣi martyam ||

पद पाठ

सम् । नः॒ । शि॒शी॒हि॒ । भु॒रिजोः॑ऽइव । क्षु॒रम् । रास्व॑ । रा॒यः । वि॒ऽमो॒च॒न॒ । त्वे इति॑ । तत् । नः॒ । सु॒ऽवेद॑म् । उ॒स्रिय॑म् । वसु॑ । यम् । त्वम् । हि॒नोषि॑ । मर्त्य॑म् ॥ ८.४.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:4» मन्त्र:16 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:33» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

फिर इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! (नः) हमको (सम्+शिशीहि) अच्छे प्रकार तीक्ष्ण बना (भुरिजोः+क्षुरम्+इव) जैसे नापित के हस्तस्थित क्षुर केशों को तीक्ष्ण बनाता है। तद्वत्। पुनः हे इन्द्र ! हमको (रायः) नाना प्रकार के धन (रास्व) दे। (विमोचन) हे समस्त दुःखों से छुड़ानेवाले इन्द्र ! (त्वम्) तू (यम्) जिस धनसमूह को (मर्त्यम्) मरणधर्मी मनुष्य के निकट (हिनोषि) भेजता है (तत्) वह धन (नः) हमको दीजिये (त्वे) जो हम तेरे अधीन हैं और जो धन (सुवेदम्) तेरे लिये सुलभ और (उस्रियम्) प्रकाश, गौ आदि वस्तु से युक्त है, उस धन को हमें दे ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे स्त्रियो तथा पुरुषो ! परमात्मा सर्वदुःखनिवारक है, यह अच्छी तरह निश्चय कर मन में उसको रख, उससे आशीर्वाद माँगते हुए सांसारिक कार्य्यों में प्रवेश करो। उससे सर्व मनोरथ पाओगे ॥१६॥
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आर्यमुनि

अब कर्मयोगी से कर्मों में कौशल्य प्राप्त करने के लिये प्रार्थना करना कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (भुरिजोः, क्षुरम्, इव) बाहु में स्थित क्षुर के समान (नः) हमको (संशिशीहि) कर्मों में अति तीव्र बनावें (विमोचन) हे दुःख से छुड़ानेवाले ! (रायः, रास्व) ऐश्वर्य्य दीजिये (त्वे) आपके अधिकार में (तत्, उस्रियम्, वसु) वह कान्तिवाला धन (नः) हमको (सुवेदम्) सुलभ है, (यम्) जिस धन को (त्वम्) आप (मर्त्यम्, हिनोषि) मनुष्य के प्रति प्रेरण करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे दुःखों से पार करनेवाले कर्मयोगिन् ! आप कृपा करके हमको कर्म करने में कुशल बनावें अर्थात् हम लोग निरन्तर कर्मों में प्रवृत्त रहें, जिससे हमारा दारिद्र्य दूर होकर ऐश्वर्य्यशाली हों। आप हमको कान्तिवाला वह उज्वल धन देवें, जिसको प्राप्त कर मनुष्य आनन्दोपभोग करते हैं। आप सब प्रकार से समर्थ हैं, इसलिये हमारी इस प्रार्थना को स्वीकार करें ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनरिन्द्रं प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वम्। नोऽस्मान्। सं शिशीहि=सम्यक् तीक्ष्णान् कुरु। शो तनूकरणे। अत्र दृष्टान्तः। भुरिजोरिव क्षुरम्=भुरिजौ इति बाहुनाम। नापितस्य बाह्वोः स्थितं यथा क्षुरं चर्मादिकं केशादिकं वा तनूकरोति। तद्वत्। पुनः। हे विमोचन=पापेभ्यो मोचयितः=सर्वदुःखनिवारक ! रायः=धनानि। रास्व=देहि। रा दाने। हे भगवन् ! त्वम्। यं धनसमूहम्। मर्त्यम्। हिनोषि=प्रेरयसि। तद्। वसु=धनम्। त्वे=त्वदधीनेभ्यः। नोऽस्मभ्यम्। देहीति शेषः। कीदृशं वसु। सुवेदम्=सुलभम्। पुनः। उस्रियम्=गवादि- पशुसंयुतम् ॥१६॥
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आर्यमुनि

अथ कर्मयोगिणः कर्मसु कौशल्यप्राप्तिः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (भुरिजोः, क्षुरम्, इव) बाह्वोः स्थितं क्षुरमिव (नः) अस्मान् (संशिशीहि) तीक्ष्णान् कुरु (विमोचन) हे दुःखाद्विमोचन ! (रायः, रास्व) ऐश्वर्यं च देहि (त्वे) त्वयि (तत्, उस्रियम्, वसु) तद्रश्मिमद्वसु (नः) अस्माकम् (सुवेदम्) सुलभम् (यम्) यद्वसु (त्वम्, मर्त्यम्, हिनोषि) त्वं मनुष्यं प्रति प्रेरयसि ॥१६॥